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Tuesday, October 28, 2014

लेख - सफर जारी है …

मैं, मैं एक शख्स हूँ, इंसान हु मैं, एक जीव इस धरती पर जो किसलिए यहाँ आया, क्या करके जायेगा; ये खुद मुझे मालूम नहीं. यूँ तो सब जीते है, जिंदगी अपने अपने हिसाब से; अपने ऊपर आयी परिस्थितियोंसे लड़ते; झ़गडते; कभी मुस्कुराते; हसते; खुश होते; कभी मायूस होते. मैं इसी जिंदगीकी रास्ते पर चलने वाला एक मुसाफिर. मुझे न मंज़िल पता है ना; मेरी दिशा. रास्तो से दिशा लेके चलता हूँ मैं; रास्तोंपरही भटक जाता हूँ, दिशा वही कि वही रह जाती है, मैं वहाँ का वहाँ ठहर जाता हूँ, फिर वही सवाल; वही मंज़िल तलाशना; एक नया साहस, एक नया दौर, बीते रास्ते भूल कर मैं चलता हूँ; एक अनदेखी रौशनीकी ओर जिसे मैंने बस सुना है, महसूस भी नहीं किया. लोग जिसके खातिर तरसते है, मुझे भी उसे पाना है, कहते है ! वो ही मंज़िल है !,

रास्तो पर कई मुसाफिर मिलते है; कोई थके हुए, कई दौड़ते हुए, उस रौशनी कि झलक पाने के लिए बेताब, इन्सानोके समंदर में; इन्सानोकी लहेरे, एक दूसरे को झ़पटती, दूर करती; फिरसे पास आती. मैं कई बार इन मौजोंके बिच फसा हूँ; कभी कुछ कदम आगे गया हूँ; कभी किनारोंपे फेका गया हूँ, एक फिर से खड़ा होने कि उम्मीद; मैं फिर से उन्ही लहरोंपे बहने लगता हूँ, कोशिश क्या है? कि जो किनारा साथ है उसे छोड़ किसी दूसरी ओर और एक किनारा है; ये खुदको समझाकर उसी किनारे कि ओर खुदको दाव पे लगाते; आगे बढ़ने कि एक कोशिश. जिस किनारेपे है, वो किनारा क्यूँ नाज नहीं आया? इसका जवाब नहीं है मेरे पास, दूसरा किनारा कैसा है! देखाभी नहीं मैंने!, कोई उस ओर गया है ये सुना है मैंने, कभी किसीको वापस आया, और वहाँ का हाल बताते देखा नहीं है मैंने, फिर भी एक कशिश है; मुझे वहाँ जाना है, मेरे आसपास सभी उस एकहि मक्सद से लगे है, भला मै कैसे चुप रहूँ? क्या मुझे भी कभी लगा था! कि मैं, ये किनारा क्यूँ छोडू?

सोच रहा था मैं; उसी किनारे बैठ कर ढलते सूरज को देखते, मेरे साथ थी मेरी परछाई, ढलती शाम के साथ दूर होती परछाई को देख, फिर से दूर क्षितीज को देखने कि कोशिश करता, वही किनारे कि रेत पर मेरे निशान बनाता बैठ गया, कुछ देर बाद देखा परछाई; मेरी खुदकी परछाई; क्षितिज के वो पार जाता सूरज ले गया, कोई साथ नहीं यहाँ, कुछ लहेरोने बने बनाये निशान भी बहाकर मिटा दिए, फिर रह गया मैं अकेला, क्या सच है फिर?; क्या कायम है इस दुनिया में?, रात कि चादर पर अनगिनत तारे आये; चाँद आया, चैन से मैं देखता रहा, आँखोंमें नींद भरि और नजर में हसते तारे, मैं देखता रहा, एक ओर से सुबह सूरज चमका एक अनोखी चमक लेकर, मैंने देखा मेरी परछाई फिर साथ आयी; थोड़ी सहमी सहमी, मैं खुश हुवा; मुझे वापिस कुछ मिल गया, तब तक वो सुनहरा चाँद वो गीत गाते तारे गायब हो गए थे, कुछ देकर कुछ छिन लेती है जिंदगी, थककर मैं फिर किसी और जगह को ढूँढता हूँ; जहाँ कुछ न मिले सही; मगर कुछ खो न पाऊ.

मैं फिर मेरी मुसाफिरी कि फितरत में नए जोश से उसी पुरानी मंज़िल को ढूँढता आगे बढ़ता हूँ. कई तरीकेके लोग, जिंदगिया, चौराहे, गुमसुम सड़के, छोटी गलिया; मिलते; छोड़ते एक जगा रुकता हूँ. पीछे वही सुनसान दिशाए एक कदम मुझसे दूर दिखती, सामनेसे एक कदम नजदीक आती दिखती है. कभी बारिशमे भीगी रास्तोंपर पेड़ के सूखे पत्ते बहते हुए; दिशाहीन; पत्थरोंसे लीपटते, एक पल थमते; फिर बहते चलते है, कभी सुनी सख्त सड़क पर नम आँखोंसे मैं आगे चलता हूँ. सफ़र जारी रहता है, दिशा शायद बदल गयी है, मंज़िल वही है, बस उसे पाने कि देरी है. मेरा सफ़र जारी है. मैं दुनिया का एक मुसाफिर रोज नयी सिख लेते; कुछ अनुभव लेते, कुछ बाटते; अनुभवोंसे सार्थबोध लेते, चलता हूँ. सफ़र जारी है.

अब कुछ आसाद नजर आ रहे है, सफर के साथ बढ़ते उम्र के कदम कुछ सिखा रहे है. वो मंज़िल और रास्तोंका खेल अब नाकामसा लग रहा है, मुझे ये ऐसा क्यूँ लगता है? मालूम नहीं ! , दुनियामे बाहर कि भीड़, आज भी दौड़ रही है, मै अचानकसे थमसा गया हूँ !, मेरे अंदर शायद एक तूफान उठ रहा है, ये मंज़िले; रास्ते एक सपना लग रहे है, कोई मुझे अंदरसे आवाज दे रहा है, देख... सोच..., जब तुझे खुद का ज्ञान नहीं हुवा है, तूने खुदको नहीं पहचाना है, तू क्या ढूंढेगा अपनी मंज़िल को?.

आखिर मैं कौन हूँ?... ये विचार मेरे भीतर सैलाब ला रहा है. मुझे इस मौकेकी तो तलाश नहीं थी कही?, अब मुझे दिशाए, क्षितिज, आसमान साफसा दिखने लगा है, उसके पार भी कुछ है, शायद वही जगह; जहाँ से सब आते है, शायद वही हर एक कि मंज़िल है. क्या ये भी वहम है?, इतने दिन किसी एक विचारपर, एक लंबे दौर पर चला, किसीका साथ न था, आज कम से कम नया विचार; नयी दिशा तो मिली, थोड़ी अलगसी लगती है,

मैं फिर चल पड़ता हूँ; नयी दिशा; नए ख्वाब; नयी उम्मीद लेके. सफ़र जारी है. मैं खुदको तलाश रहा हूँ, जो कमसे कम मेरे साथ तो है, न अब रास्ता भटकनेका दर है; न दिशा गुम होने का भय है. मै तो मेरे साथ हूँ. मेरी खुद कि तलाश जारी है.

सफ़र जारी है...

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© सचिन पुरुषोत्तम कुलकर्णीwww.saarthbodh.com 

1 comment:

  1. kharach ...khupach apratim lekh.

    jivan ek safar .......

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